Thursday, August 29, 2019

कश्मीर में हिंदू राज और गज़नी की अपमानजनक हार की कहानी

भारत की तरह ही कश्मीर में भी इस्लाम के आगमन की कहानी इतिहास से पहले मिथकों के रूप में शुरू होती है. ख्वाजा मुहम्मद आज़म दीदामरी नाम के सूफी लेखक ने फारसी में 'वाक़यात-ए-कश्मीर' नाम से 1747 में एक किताब प्रकाशित की जिसकी कहानियां पौराणिक कथाओं की तर्ज पर लिखी गई थीं.
इसमें बताया गया है कि राक्षस जलदेव इस पूरे क्षेत्र को पानी में डुबाए रखता है. इस कहानी का नायक 'काशेफ' है, जिसे वह किसी मारिची का बेटा बताता है. काशेफ महादेव की तपस्या करता है और फिर महादेव के सेवक ब्रह्मा और विष्णु जलदेव का दमन कर काशेफ-सिर के नाम से इस क्षेत्र को रहने लायक बनाते हैं. विद्वान मानते हैं कि यह काशेफ वास्तव में कश्यप ऋषि की कहानी है, जिसमें घालमेल कर उसे जाने-अनजाने मुस्लिम जैसा साबित करने की कोशिश हुई है.
'वाक़यात-ए-कश्मीर' लिखने वाले आज़म के बेटे बेदिया-उद-दीन इस मिथकीय कहानी को और भी दूसरे स्तर पर लेकर चले गए. उन्होंने तो इसे सीधे आदम की कहानी से जोड़ दिया.
उसके मुताबिक कश्मीर में शुरू से लेकर 1100 साल तक मुसलमानों का शासन था जिसे हरिनंद नाम के एक हिंदू राजा ने जीत लिया. उसके मुताबिक कश्मीर की जनता को इबादत करना स्वयं हजरत मूसा ने सिखाया. उसके मुताबिक मूसा की मौत भी कश्मीर में ही हुई और उनका मकबरा भी वहीं है.
दरअसल, बेदिया-उद-दीन ने यह सब संभवतः शेख़ नूरुद्दीन वली (जिन्हें नुंद ऋषि भी कहा जाता है) के 'नूरनामा' नाम से कश्मीरी भाषा में लिखे गए कश्मीर के इतिहास पर आधारित करके लिख दिया. बहरहाल, इतिहासकारों ने चेरामन पेरूमल की कहानी की तरह इन कहानियों को भी कोई महत्व नहीं दिया है.
पृथ्वीनाथ कौल बामज़ई एक प्रसिद्ध कश्मीरी इतिहासकार हुए हैं. कहा जाता है कि उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने उनसे कश्मीर का विस्तृत इतिहास लिखने का अनुरोध किया था.
1962 में प्रकाशित उनकी किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ कश्मीर' की भूमिका स्वयं प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी थी. तीन खंडों में लिखित 'कल्चर एंड पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ कश्मीर' इस प्रदेश के इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत कहा जा सकता है.
बामज़ई के मुताबिक बिन-क़ासिम सिंध विजय के बाद कश्मीर की ओर बढ़ा ज़रूर था, लेकिन उसे कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी. उसकी अकाल मृत्यु की वजह से उसका कोई दीर्घकालिक शासन भी स्थापित न हो सका. कश्मीर तक पहुंचने की दुर्गम भौगोलिक स्थिति की वजह से भी अरब वहां पहुंच पाने में असमर्थ रहे थे.
अरबों के साथ कश्मीरी हिंदू शासकों का पहला संपर्क कार्कोट राजवंश (625 से 885 ईस्वी) के दौरान हुआ था. मध्य एशिया और अफगानिस्तान के अपने अभियानों के दौरान इस वंश के प्रमुख राजाओं जैसे चंद्रपीड़ और ललितादित्य का सामना अरबों से हुआ और पहली बार उनका परिचय इस्लाम नाम के इस नए धर्म से हुआ.
अरबों से उन्हें इतना खतरा महसूस हुआ कि ललितादित्य ने चीन के सम्राट के पास अपना राजदूत भेजकर मदद मांगी थी और अरबों के खिलाफ एक सैन्य गठबंधन बनाने का अनुरोध किया था.
कश्मीर की दुरूह भौगोलिक स्थिति की वजह से वहां किसी तरह का बाहरी घुसपैठ आसान नहीं था. इसके अलावा कश्मीर के राजा भी अपनी सीमाओं को पूरी तरह बंद रखते थे और बाहरी संपर्क को हतोत्साहित करते थे.
1017 में भारत की यात्रा करने वाले अल बरूनी ने इस बारे में बहुत ही शिकायती लहजे में लिखा है- 'कश्मीरी राजा खास तौर पर अपने राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के बारे में बहुत चिंतित रहते हैं. इसलिए कश्मीर तक पहुंचने वाले हर प्रवेश-मार्ग और सड़कों पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए वे बहुत सावधानी बरतते हैं."
"इस वजह से उनके साथ किसी भी तरह का व्यापार करना भी बहुत मुश्किल है. वे किसी ऐसे हिंदू को भी अपने राज्य में नहीं घुसने देते जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से जानते न हों."
ध्यान रहे कि अल बरूनी का काल महमूद ग़ज़नी का काल भी है. भारत पर किए गए ग़ज़नी के कई आक्रमणों से हम परिचित हैं. ग़ज़नी से करीब सौ साल पहले काबुल में लल्लिया नाम के एक ब्राह्मण मंत्री ने अपनी राजशाही स्थापित की थी जिसे इतिहासकार 'हिंदू शाही' कहते हैं. उसने कश्मीर के हिंदू राजाओं के साथ गहरे राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध कायम किए थे.
ग़ज़नी ने जब उत्तर भारत पर हमला करने की ठानी तो उसका पहला निशाना यही साम्राज्य बना. उस समय काबुल का राजा था जयपाल. जयपाल ने कश्मीर के राजा से मदद मांगी. मदद मिली भी, लेकिन वह ग़ज़नी के हाथों पराजित हुआ. पराजित होने के बाद भी जयपाल के बेटे आनंदपाल और पोते त्रिलोचनपाल ने ग़ज़नी के खिलाफ लड़ाई जारी रखी.
उत्पाल वंश के राजा हर्षदेव या हर्ष ने 1089 से 1111 (कुछ विद्वानों के अनुसार 1038-1089) तक कश्मीर पर शासन किया. उसके बारे में माना जाता है कि वह इस्लाम की सीखों से प्रभावित हो गया और इस कदर प्रभावित हो गया कि न केवल उसने खुद मूर्तिपूजा छोड़ दी, बल्कि कश्मीर में मौजूद मूर्तियों, हिंदू मंदिरों और बौद्ध मंदिरों को भी ध्वस्त करने लगा.
इस काम के लिए उसने 'देवोत्पतन नायक' नाम से एक विशेष पद का प्रावधान तक किया था. हर्ष ने अपनी सेना में तुरुष्क (तुर्क) सेनानायकों तक को नियुक्त किया था. 'राजतरंगिणी' के लेखक कल्हण उसके समकालीन थे. कल्हण के पिता चंपक को हर्ष का महामंत्री भी बताया जाता है. कल्हण ने मूर्तिभंजक हर्ष को अपमानजनक अंदाज में 'तुरुष्क' यानी 'तुर्क' की निंदात्मक उपाधि दी है.
1277 के आस-पास वेनिस के यात्री मार्को पोलो ने कश्मीर में मुसलमानों की मौजूदगी बताई है. इतिहासकारों का मत है उस दौरान कश्मीर के बाहरी हिस्सों में और सिंधु नदी के आस-पास बसे दराद जनजातियों के लोग बड़ी संख्या में धर्म-परिवर्तन कर इस्लाम स्वीकार कर रहे थे.
कश्मीर में इस्लाम का प्रचार तेजी से बढ़ रहा था और लोग इसे बड़ी संख्या में अपना रहे थे. इसका कारण था कि वहां की जनता वहां के राजाओं और सामंतों के आपसी झगड़े में पिस रही थी. खासकर किसानों पर दोहरी मार पड़ रही थी.
एक तो उसे अपनी ज़मीन से कुछ भी उपज नहीं मिल पा रही थी, दूसरे एक-के-बाद-एक प्राकृतिक आपदाएं जैसे- सूखा, भूकंप, बाढ़ और आगलगी ने उनके जीवन को दुःख और निराशा से भर दिया था.
ठीक इसी दौर में उनका संपर्क मुस्लिम सैनिकों और सूफी धर्म-प्रचारकों से होना शुरू हुआ. इस्लाम एक ऐसा नया विचार था, जो उनके मन में विश्वास और आशा का संचार कर पा रहा था. इस्लाम उन्हें सदियों पुराने शोषणकारी कर्मकांडों से भी निजात दिला रहा था. इसे हाथों-हाथ लिया गया.
त्रिलोचनपाल को तत्कालीन कश्मीर के राजा संग्रामराजा (1003-1028) से मदद भी मिली, लेकिन वह अपना साम्राज्य बचा न सका. 12वीं सदी में 'राजतरंगिणी' के नाम से कश्मीर का प्रसिद्ध इतिहास लिखने वाले कल्हण ने इस महान साम्राज्य के पतन पर बहुत दुःख जताया है.
ग़ज़नी ने इसके बाद आज के हिमाचल का हिस्सा कांगड़ा भी जीत लिया, लेकिन कश्मीर का स्वतंत्र हिंदू साम्राज्य उसकी आंख का कांटा बना रहा. 1015 में उसने पहली बार तोसा-मैदान दर्रे के रास्ते कश्मीर पर हमला किया, लेकिन दुर्गम भौगोलिक परिस्थिति और कश्मीरियों के जबरदस्त प्रतिरोध की वजह से उसे बहुत अपमान के साथ वापस लौटना पड़ा.
यह भारत में किसी युद्ध में उसके पीछे हटने का पहला मौका था. वापसी में उसकी सेना रास्ता भी भटक गई और घाटी में आए बाढ़ में फंस गई. अपमान के साथ-साथ ग़ज़नी का नुकसान भी बहुत हुआ.
छह साल बाद 1021 में अपने खोए हुए सम्मान को अर्जित करने के लिए ग़ज़नी से फिर से उसी रास्ते कश्मीर पर हमला किया. लगातार एक महीने तक उसने जबरदस्त प्रयास किया, लेकिन लौहकोट की किलाबंदी को वह भेद न सका. घाटी में बर्फबारी शुरू होने वाली थी और ग़ज़नी को लग गया कि इस बार उसकी सेना का हाल पिछली बार से भी बुरा होनेवाला है.
वह कश्मीर की अजेय स्थिति को भांप चुका था. दोबारा अपमान का घूंट पीते हुए उसे फिर से वापस लौटना पड़ा. उसके बाद उसने कश्मीर के बारे में सोचना भी बंद कर दिया.

Wednesday, August 28, 2019

حرائق غابات الأمازون: ليوناردو دي كابريو يتبرع بخمسة ملايين دولار لتقديم المساعدة

خصصت مؤسسة ليوناردو دي كابريو لحماية البيئة، والتي تحمل اسم "إيرث أليانز"، مبلغ خمسة ملايين دولار بغية تقديم مساعدة لمكافحة تفاقم الحرائق في غابات الأمازون المطيرة.
وسوف تقدم مؤسسة "إيرث أيلانز" الأموال لهيئات محلية ومجتمعات السكان الأصليين، العاملة في حماية منطقة الأمازون.
ويقول المعهد الوطني لبحوث الفضاء في البرازيل إنه اندلع ما يزيد على 72 ألف حريق في غابات الأمازون المطيرة هذا العام.
ويمثل هذا العدد زيادة كبيرة، مقارنة بحرائق العام الماضي التي بلغت 40 ألف حريق.
ويقول بيان على موقع مؤسسة "إيرث أيلانز" على الإنترنت : "إن تدمير غابات الأمازون المطيرة ينشر بسرعة غاز ثاني أكسيد الكربون في الجو، ويدمر نظاما بيئيا يمتص ملايين الأطنان من انبعاثات الكربون كل عام، والذي يعد أحد أفضل دفاعات الكوكب في مواجهة أزمة المناخ ".
وكانت المؤسسة قد حصلت على الأموال من عدة معاهد علمية.
وترجع زيادة حرائق الغابات إلى زيادة معدل إزالة الأشجار من أجل تربية الماشية.
ويواجه الرئيس البرازيلي يائير بولسونارو انتقادات تقول إنه يشجع تدمير منطقة الأمازون من خلال عدم اتخاذ إجراءات بشأن القضايا البيئية.
أما بولسونارو، المتشكك في قضية التغير المناخي، فيتهم في المقابل منظمات غير حكومية بإشعال الحرائق لتشويه صورة حكومته، لكنه لم يقدم أي دليل على هذا الادعاء.
وكان ليوناردو دي كابريو قد أسس "إيرث أليانز" بالتعاون مع اثنين من فاعلي الخير الآخرين في شهر يوليو/تموز، بهدف حماية الحياة البرية والدفع من أجل دعم العدالة في مجال المناخ، وتأمين حقوق السكان الأصليين.
وتعد مبادرة "صندوق غابات الأمازون" مبادرة جماعية تهدف إلى جمع الأموال اللازمة لحماية هذه المنطقة تحديدا.
وقال النجم السينمائي في منشور على موقع إنستغرام يوم السبت إنه "يشعر بقلق عميق إزاء الأزمة المستمرة في منطقة الأمازون، والتي تسلط الضوء على التوازن الدقيق للمناخ والتنوع الأحيائي وسلامة الشعوب الأصلية".
ويشجع دي كابريو مشاركة المجتمع وتقديم الدعم لمواجهة الأزمة عن طريق وضع روابط على الإنترنت يمكن من خلالها تقديم التبرعات.
في ذات الوقت تشير أنباء إلى أن القادة الدوليين في قمة مجموعة السبع في مدينة بياريتس الفرنسية توصلوا إلى اتفاق بشأن تقديم مساعدة دولية لمواجهة الأزمة.
وقال رئيس الوزراء البريطاني بوريس جونسون إن بريطانيا ستقدم 10 ملايين جنيه إسترليني لحماية غابات الأمازون المطيرة.
وتشيع الحرائق في غابات الأمازون في موسم الجفاف، الذي يبدأ من يوليو/تموز وحتى أكتوبر/تشرين الأول. ويمكن أن تشتعل الحرائق بفعل الطبيعة كما في ضربات البرق، لكنها أيضا قد تشتعل بفعل المزارعين والحطابين ممن يتخلصون من الحطب لتجهيز الأرض لزراعة محاصيل جديدة أو للرعي.
وكان ثاني أكبر عدد من الحرائق من نصيب فنزويلا التي شهدت أكثر من 26 ألف حريق، تلتها بوليفيا في المركز الثالث مسجلة أكثر من 17 ألف حريق.
واستأجرت حكومة بوليفيا طائرة لإطفاء الحرائق المشتعلة شرقي البلاد. وامتدت ألسنة الحرائق لنحو ستة كيلومترات مربعة في الغابات والمراعي.
كما دفعت الحكومة بالمزيد من عمال الطوارئ إلى المنطقة، كما تعمل حاليا على إقامة محميات للحيوانات الهاربة من النيران.
وأضاف "العديد من القادة العسكريين للحركة يريدون الاستمرار في القتال، لأن هذا الاتفاق يحفظ ماء الوجه بالنسبة للأمريكيين ويجنبهم الظهور بمظهر الذل".
وبحسب المقال، فقد كان لإعلان تنظيم الدولة الإسلامية عودته إلى أرض المعركة في أفغانستان، بعد حادث تفجير عرس في كابول في 17 أغسطس/ أب الجاري، الدور الكبير في استمالة القادة المتشددين للانشقاق من الحركة.
وعلى الرغم من أن الولايات المتحدة تشترط على الحركة، إخراج تنظيم القاعدة وعدم السماح له باستخدام الأراضي الأفغانية لتنفيذ هجمات على الغرب، لإبرام أي اتفاق سلام، فإن الصحيفة تعتقد أن الوعود والضمانات التي تقدمها الحركة تبقي غير كافية في الوقت الذي يبدو من المرجح أن تبقى أفغانستان ملاذا أمنا للإرهاب، إذ يسعى تنظيم الدولة الإسلامية إلى أن يحل محل تنظيم القاعدة.
وقد عبر المفاوضون من جميع الأطراف في قطر في حديث للصحيفة عن قلقهم من أن الاتفاق قد يفكك حركة طالبان، في ظل انشقاق المقاتلين المتشددين لتنظيم الدولة الإسلامية.
وفي الوقت الذي تقدم فيه حركة طالبان نفسها كبديل مستقبلي للحكومة الأفغانية الحالية، هناك تخوف من أنها اذا انتصرت في الحرب لربما تدخل في أتون حرب أهلية اخرى.
وعلى الرغم من أن الحرب الطويلة في أفغانستان قد أضعفت التنظيم إلا أنه لا يزال يشكل خطرا على المدن الكبيرة حيث يقدم نفسة كمدافع عن الشريعة الإسلامية والجهاد في الوقت الذي تفاوض فيه حركة طالبان على حل وسط مع "الصليبيين" الامريكيين.
ويخلص المقال إلى أنه إذا أدى استعجال الامريكيين بالخروج من أفغانستان إلى حدوث فوضى في البلد، فإن تنظيم الدولة الإسلامية مستعد لملء الفراغ.
وفي صحيفة ديلي تلغراف كتب تيم ستانلي مقالا بعنوان "يحتاج ترامب إلى التصرف كشعبوي إذا أراد الفوز مرة أخرى" مع استعداد الرئيس الأمريكي والحزبين الجمهوري والديمقراطي لخوض انتخابات الرئاسة الامريكية 2020.
ويشير ستانلي إلى أن ترامب على وشك أن يخسر الانتخابات الرئاسية القادمة. حيث لم تصل نسبة تأييده إلى 45 في المائة منذ أكثر من عامين، بينما يبدو بعض منافسيه الرئيسيين من الديمقراطيين أفضل حظا حسب استطلاعات الرأي.
ويرى الكاتب أنه في حالة خسارة ترامب، فإن الكثير من الناس سيلومون سياساته الشعبوية. وسيقول اليمين: "هذا ما يحدث عندما تخرج عن رأسمالية السوق الحرة"، بينما سيقول اليسار: "كانت الشعبوية مجرد عنصرية البيض، وليس هناك ما يكفي من البيض لإبقاء ترامب في السلطة"، فالشعبوية لا تحظى بالشعبية.
لكن هناك قراءة بديلة لرئاسة ترامب، تقول إن المشكلة الحقيقية تكمن في أن ترامب لم يكن شعبويا بما فيه الكفاية.
ويقارن الكاتب بين سباق الرئاسة الحالي وسباق أواخر السبعينيات وبداية الثمانينيات، حيث كانت الأزمة الاقتصادية هي السبب في انخفاض نسبة مؤيدي كارتر وخسارته وبالمقابل ارتفاع نسبة مؤيدي ريغان ونجاحة، لكن الوضع يختلف مع ترامب حيث أن الاقتصاد الامريكي في أفضل حالاته.
إذا لما تنخفض نسبة مؤيدي ترامب؟ يتساءل الكاتب؟ فيقول إن هناك جدلا متزايدا بين مفكري الشعبوية حول احتمالية أن يكون ترامب قد أتلف مشروع الشعبويين، حيث أن شعبوية اليمين تحلق بجناحين، أحدهما الثقافة المحافظة والآخر، النهج الاقتصادي الذي يحد من الحرب الطبقية، أي بمعنى "الناس البسطاء مقابل طبقة النخبة".
ويمضي الكاتب ليقول إن ترامب استغل الثقافة المحافظة حين اتخذ مواقف صارمة من الاجهاض والسلاح وبالتالي حافظ على السلم في المجتمع. فمعارضة الشعبوية اليمينية للحرب أربكت النقاد، حيث كان من المفترض أن يكون مواليا للجيش.
وقلصت سياسات ترامب الائتلاف الجمهوري من خلال طرد الرأسماليين القدامي، لكنها لم توسع نطاق الحزب بشكل كاف من خلال جذب الشعوبيين من الطبقة العاملة. فسياسته في خفض الضرائب خدمت الأغنياء أكثر من الطبقة العاملة.
كما أن حديثة الدائم عن الهجرة والمهاجرين واصراره على بناء الجدار الحدودي مع المكسيك لم يمنع المهاجرين من التدفق إلى الولايات المتحدة.
ويختم الكاتب بالقول إن كثيرا من قيادات الشعبوية الذين ناصروا ترامب في حملته الانتخابية السابقة، غيروا انتماءهم السياسي لأنهم كانوا يقولون إن ترامب يفهم الشخصية الامريكية المتوسطة أكثر منهم، لكنهم الآن يقولون إنهم يريدون أن يذهبوا أبعد من ترامب، أي أنهم يريدون أن "يتوغلوا في الترامبية أكثر من ترامب".

Friday, August 16, 2019

مغني الأوبرا العالمي بلاسيدو دومينغو يواجه مزاعم بالتحرش الجنسي

وجهت إلى مغني الأوبرا الشهير بلاسيدو دومنغو تهم بالتحرش الجنسي من قبل عدة نساء، وخلال فترة ممتدة لعدة عقود، لينضم بذلك إلى مجموعة من نجوم الفن والرياضة والأسماء البارزة في عالمي السياسة والمال والأعمال الذين وجهت إليهم تهم مماثلة خلال الفترة الأخيرة.
وأفادت وكالة الأنباء أسوشيتيد برس بأن ثماني مغنيات وراقصة واحدة، يزعمن أنهن تعرضن للتحرش الجنسي من قبل التينور الإسباني الشهير منذ أواخر الثمانينات.
إلا أن واحدة فقط من النساء التسع، وهي مغنية الميزو سوبرانو (السوبرانو المتوسط) باتريشيا وولف، وافقت على إعلان اسمها.
ونفى دومينغو هذه الاتهامات، كما تعهدت دار الأوبرا، التي يديرها في لوس أنجلوس بالتحقيق في هذه الاتهامات بمساعدة "مستشار خارجي".
"وقال دومينغو في بيان رداً على هذه الاتهامات "مع ذلك، من المؤلم أن أسمع أنني ربما أزعجت شخصاً ما، أو جعلته يشعر بعدم الارتياح، بغض النظر كم من الزمن مرّ على ذلك، وعلى الرغم من حسن نواياي".
وأضاف مغني الأوبرا الشهير "الناس الذين يعرفونني، أو الذين عملوا معي، يعلمون أنني لست الشخص الذي يمكن أن يؤذي أحداً، أو يسيء إليه، أو يحرجه". وقال "أدرك أن القواعد والمعايير التي نعتمدها ونقيس عليها اليوم مختلفة تماماً عما كانت عليه في الماضي".
وتابع "لقد كان لي الشرف بأن أمضي أكثر من 50 عاماً في الأوبرا، وسألتزم دائماً بأعلى المعايير".
وبحسب أسوشيتيد برس، فإن ست نساء أخريات يزعمن أن التينور تسبب في شعورهن بعدم الارتياح من خلال عرضه"اقتراحات جنسية" عليهن.
ولم تتضمن اتهامات وولف للتينور الإسباني القيام بملامسات فعلية، وإنما قالت إنه لم يلمس جسدها، لكنه، كان يقترب منها في كل مرة تغادر فيها المسرح، ويسألها فيما إذا كان عليها "العودة إلى المنزل الليلة".
وقالت امرأة أخرى أن دومينغو وضع في أحد المرات يده تحت تنورتها، في حين قالت ثلاث أخريات أنه قبلهن بالقوة.
وبحسب الاتهامات، فقد وقعت الحوادث في أماكن مختلفة من ضمنها غرفة تغيير الملابس، وغرفة في أحد الفنادق، وفي دور أوبرا كان دومينغو يشغل فيها مناصب إدارية، أو "أثناء غداء عمل، لم يكن هذا غريباً"، كما قالت إحدى المغنيات لوكالة الأنباء.
وأضافت المغنية "شخص ما يحاول أن يمسك يدك أثناء غداء عمل، إنه أمر غريب، أو يضع أو يضع يده على ركبتك، إنه أمر غريب بعض الشيء. لقد كان دائما يلمسك بطريقة ما، ويقوم دائماً بتقبيلك دائماً".
وكان من المقرر أن يشارك دومينغو في الحفل الافتتاحي لأوركسترا فيلادلفيا في 18 سبتمبر، لكن المنظمين قالوا إنهم سحبوا دعوتهم له بعد ظهور هذه المزاعم.
ويشغل دومينغو حالياً منصب المدير العام لأوبرا لوس أنجلوس. كما شغل سابقاً منصب المدير الفني، ثم المدير العام للأوبرا الوطنية في واشنطن.
ولا يزال دومينغو (78 عاماً) أحد أكبر نجوم الغناء الأوبرالي في العالم، ويقبل الجمهور بشكل كبير على حضور حفلاته وشراء تسجيلاته في أنحاء العالم. وهو متزوج من مغنية السوبرانو مارتا أورنيلاس، زوجته الثانية، منذ عام 1962.